यह प्रतापगढ़ की प्रसिद्ध ललित कला है जिसे 'थेवा' के नाम से जाना जाता है। ...थेवा गहने बनाने की एक विशेष कला है “थेवा 'राजसोनी' परिवार की एक पारम्परिक कला है। इस कला में रंगीन शीशे (बेल्जियम ग्लास ) की ऊपरी सतह पर सोने से थेवाकारी व सोने से नक्काशी की जाती है, इसे ही थेवा कहा जाता है। यह प्रतापगढ़ जिले, राजस्थान भारत में विकसित हुआ। इसकी उत्पत्ति मुगल युग से हुई है।17वीं शताब्दी में मुग़ल काल में राजस्थान के राजघरानों के संरक्षण में पनपी एक बेजो़ड हस्तकला है
जगदीश लाल राज सोनी भारत में राजस्थान राज्य के प्रतापगढ़ के एक प्रसिद्ध शिल्पकार हैं। उन्हें थेवा कला के लिए 2002 में शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने 1968 में लंदन विश्वविद्यालय से डिजाइन में एक कोर्स किया।
1970 में उन्हें अपने काम के लिए मेरिट सर्टिफिकेट मिला।
1977 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। उन्हें राजस्थान सम्मान पुरस्कार भी मिला।
उन्होंने काला मण पुरस्कार और जोधपुर में उम्मेद भवन जयंती पुरस्कार प्राप्त किया
साथ ही इनटैक, दिल्ली(INTACH, Delhi.)से पुरस्कार भी प्राप्तकिया।
जगदीश लाल ने जापान में एशिया हस्तशिल्प मेले में( Asia Handicrafts Fair in Japan), ज्यूरिख में रिटेटबर्ग संग्रहालय
(Ritteberg Museum in Zurich)और जिनेवा में नृवंशविज्ञान संग्रहालय( Ethnographic Museum)में अपनी कला का प्रदर्शन किया है।
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Rajsoni Thewa Art ( Originator of Thewa Art)
थेवा आभूषणों के प्रकार
गहनों के टुकड़ों के अलावा नॉन-ज्वेलरी थेवा से सजाए गए सामान में ट्रे, प्लेट, फोटो फ्रेम, दीवार घड़ी, ऐशट्रे, दिल के आकार का पेंडेंट, नेकलेस सेट, ब्रेसलेट, झुमके, टॉप, चूड़ियाँ, टाई-पिन, साड़ी-पिन (ब्रोच, बटन) शामिल हैं। सेट, सुपारी के कंटेनर, गुलाब जल छिड़कने वाले, सिगरेट के बक्से, कार्ड बॉक्स, फूल vases, कफ-लिंक और इत्र की बोतल।
नाम का अभिप्राय
थेवा" नाम की उत्पत्ति इस कला के निर्माण की दो मुख्य प्रक्रियाओं 'थारना' और 'वाड़ा' से मिल कर हुई है। इस कला में पहले कांच पर सोने की बहुत पतली वर्क या शीट लगाकर उस पर बारीक जाली बनाई जाती है, जिसे थारणा कहा जाता है। दूसरे चरण में कांच को कसने के लिए चांदी के बारीक तार से फ्रेम बनाया जाता है, जिसे "वाडा" कहा जाता है। तत्पश्चात इसे तेज आग में तपाया जाता है। फलस्वरूप शीशे पर सोने की कलाकृति और खूबसूरत डिजाइन उभर कर एक नायाब और लाजवाब कृति का आभूषण बन जाती है।
गोपनीय प्रक्रिया
इसकी गोपनीयता को बनाये रखने के लिए किसी और को बताना या सिखाना तो दूर की बात है, घर की लड़कियों से इसकी यह प्रक्रिया गुप्त रखी जाती है, ताकि कहीं शादी होने पर वे इस राज को अपने ससुराल में न बता देें। काँच पर उकेरी गई डिजाइन को रंगीन काँच में समाहित रखने की क्रिया को अपने बेटों के अलावा किसी और को नहीं बताया जाता है किन्तु अब बदलाव आता सा नज़र आ रहा है। बहुएं और बेटियां इस काम में हाथ बटाँने लगी है और कई परिवारों में अब इस सोच में तेजी से बदलाव सा आता नज़र आ रहा है।
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